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।। २५६ ।। सब सज्जन आइ मिल्या, हर्ष बदन राय दियो सन्मान तो ॥ शुभ मुहूर्तना योग्यथी, नयर प्रवेश कियो राजान तो || बार्जित्र बहू बा - जता, सोवागन किया मंगळ गान तो ॥ दुःखी नो दुःख गमाववा, मेघ धारा पर दीघो छे दान तो || पु० || २५७ || राज सिंहासों बेठीया, सामंतादि सहू मिल्या हर्ष यान तो ॥ बंदीवान छोडावीया, नगर में उत्सव खुशी असमान तो ॥ जंडार शैन्या स्ववस किया, सर्व देशमें फिरी जी - म यान तो ॥ जसोदाने मोटी करी, सहु जन माने माता समान तो ॥ पु० ।। २५८ ॥ सुर सुन्दरी नाशी गई, हरीसेण रहे मानी नाइकी काण तो ॥ धर्म शाल मंडाइ देशमें, अन्न वस्त्र दे दुःखी देख प्रान तो ॥ प्रजानी करे पालना, सहु सुखीया नया पुन्य प्रमान तो ।। रिख अमोल कहे