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________________ ( ४ ) सती अनीराम तो ॥ मानवती जोयराविषे, पोताना पतीने पायो चरणांम तो || सु० ॥ ६ ॥ दमयंती वन वासोवसी, चेलणा प्रतिलाच्या जग स्वाम तो || पद्मावती पुत्र पठावियो, मेणरह्या बची सही दुःख घामं तो || तिलोक सुंदरी परवस रही, चार कुष्टी हुवा न पुगी हाम तो ॥ सु० ॥ ॥ ७ ॥ कुसुमश्री वेस्पा घर रही, सील बचायो युक्ती करी ग्राम तो ॥ इत्यादि के सतीयां हुई, संकटे न कर्यो सील जोखामैं तो ॥ इणपरे खुशीला जाणिये, धन्न २ सबकों करूं प्रणाम तो ॥ सती संतका गुण उचरी, पवित्र होवे रसना श्रुत ग्रामतो || सु० ॥ ८ ॥ जंबुद्विप सुहामणो, नर्त-क्षेत्र दक्षिण दिशा माहि तो ॥ बत्तीश हजार देश हमें, आर्य साडा पच्चीस कहवायतो ॥ तिणमें मा १ पगधोवन २ दुख. ३ हरकत. ४ नीम. १ कान.
SR No.006294
Book TitleBhimsen Harisen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year1909
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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