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जो नोग तो ॥ सु० ॥ ३९ ॥ मुखे २ बधे दोनु जणा, नही फिकर कोइ जोग योग तो ॥ षेट वसुं बर्ष अंदाजथी, दोइ हुवा जोवे पुन्य फल लोग तो ॥ ए शुभ कर्म रचना कही, आगे सुणो हवे कू कर्म जोग तो ॥ प्रथम अधिकार पूरो थयो, रिख मोल कहे शुध योग तो ॥ सु० ॥ ४० ॥ || दुहा ॥ त्रण तणो भारत हुवे, रज केरो गॅज थाय ॥ त्रिया चरित्र प्रतापथी, बडा २ बिटवाय ॥ १ ॥ राय थी एकदा, हरण थयो एक फल || खबर न लागी तेहनी, कर्म गती छे अचल ॥ ३ ॥ वन पालक फल पांच ते, संग्रही धर्या निजस्थान ॥ उत्पात जे एहथी हुवे, ते सुणजो घर कान ॥ ४ ॥ ढाल - सती ने सिरोमण अंजना ॥ ए देशी ||
१ योग्य. २ . ३ भाठ ४ हाथी.