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(५७) निरास होइ चल्यो, देख्या वाणिक लोनी केवा छेय तो ॥ जो० ॥ १४४ ॥ राते आये किती प्रतीष्टे, उंडो विचार करे मनमेय तो ॥ किम जाउं कुटंब कने, तिणने अासा छे लासी धन नेय तो ॥ सहू बाते हूं नागो नयो, पूछस्ये मुज काइलाया थेय तो ॥ पास हतो तेही खो दियो, कर्मा इ नवा मुज घरेय तो ॥जो० ॥१४५ ॥ पछता ता आया बाडामें, कें.पडी बारे उन्ना चुपकेय तो ॥ छिद्रमंथी जोवे मायने, घास वीछरीयो छे पुत्रोने नीचेय तो ॥ सूता दोनू टाबर्या, ढांक्या तस घाघरे प्रोडणेय तो ॥ राणी अंग संकोचने, नगन बेठी थर २ कंपेय तो ॥ जो० ॥ १४६ ॥ देवसेण कहे मां नणी, धायजी म्हने घणी लागे छे ठंड तो॥ कालजो कम्पे महारो, वायरो शीतल रह्यो छे मंड तो ॥ अंग सहू ठंडो हुयो, प्रो