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(६१) कहे मातजी, तूं रोवे म्हाने राख्या समजाय तो॥ तुम जो इम करवा लग्या, तो म्हाको जीव स्थिर किम रहाय तो ।। जो० ॥ १५५ ॥राणी रोवती धीरज धरी, पाछो उत्तर दे इण परे वाय तो ॥ मुजने अाधार किणरो नही, थारा पिताजीनो थो मन मांय तो॥ वे दुःखसे घबरायने, मुजने मीठे बचन समजाय तो॥ एक मासको कह गया, ति. णने गयाने बारे मास थाय तो॥जो०॥१५६॥ रुप्या पण ज्या नहीं, कह्यो थो महीनामें देस्यूं पहोंचाय तो॥ समाचार सुण्या नही, इम निरदय किम निकल्या राय तो ॥ ऐसा में जाणती नहीं, नहीतो पल्लो धर देती बेठाय तो॥ हवे कब दर्शन होवसी, वे किणतरे होसी सुख दुःख माय तो ॥ जो० ॥ १५७ ॥ परमेश्वर वांने सुखी रखो, सुखी थया बापांने लेसी बुलाय तो॥ ए आसा