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(११२) सेणने गादी बेठाय तो॥ क्षितिप्रतिष्ट केतसेणने, मासाजी दियो प्रेम जणाय तो॥ फिर दिदा मोत्सब मंडयो, शिवकामें बेठा राणी राय तो॥०॥२८५॥ मुनी पास बाइ दिक्षा ग्रही, चारूंई संयम मन रमाय तो ॥ दोनू कुंवर श्रावक हूया, मुनी वंदी निज राजे जाय तो॥ जिन विचरे नू मंडले, नीमऋषी नीमवृतरे माय तो ॥ विजयऋषी जीते कर्मनें, दोनो सती धर्म प्रेम सवाय तो ॥ ५० ॥२८६ ॥ चार अघाती दपायने, हरीऋषीजी मोक्ष सिधाय तो ॥ नीमऋपीना पुन बंध्या, पधार्या सर्वार्थ सिद्ध माय तो॥ दोनो सती नारी लिंग तजी, स्वर्ग बारमें सामानिक थाय तो ॥ महा विदेहमें सहु उपजी, करगणीकर अकय सुख पाय तो॥ध० ॥ २८७ ॥