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________________ ( ३५ ) ग्रंथी मूकी एक ठाय तो ॥ बडीनीत करी कुंवर तिहां, राणीजी लाग्या सुचीरे उपाय तो ॥ क ० ॥ ॥ ८४ ॥ जित्रे उचक्को यायने, ते पोटली लिधी निजर चोराय तो ॥ नागी गया छिप्यो जाडी में, चोर तणे घट दय रहे नाय तो ॥ राणी कुंवर कड्या लिया, पोटली लेवा नीचे कुकाय तो ॥ गठडी निजर या नहीं, घेशत खा पडी तिहां मुरछाय तो ॥ क० ॥ ८५ ॥ केतूसेरा रोवलग्या, नीमसेण सुण पाछा जोय तो || राणी धरणी ढली देखने, अश्चर्य पाया उदासज होय तो ॥ दोडीने या तिहां, द्रव्य गांठडी पेखे नही सोय तो ॥ फिकर हुइ घरकी एड्या, बलूडा उना विल २ रोय तो ॥ क० ॥ ८६ ॥ बोलावे दोइ मावित्रने, उत्तर न देता चक्रांद करे सोय तो || शितल पव१ गांउ २ झाडो. ३ चोर. a
SR No.006294
Book TitleBhimsen Harisen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year1909
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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