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( ३६ )
न प्रसंगथी, कि अंतर सावध हुया दोय तो ॥ छाती फाटे होयो उमंगे, समजावणहार तिहां नही कोय तो ॥ चारीका कुरले कालजा, देखो कर्म - टंब विगोय तो ॥ क० ॥ ८७ ॥ राजा कहे हवे कम करूं, र पुन्य दिधा सहू खोय तो ॥ पूरो विश्वास थो नाइपें, दुशमण सेते अधिक निक्ल्योय तो । राजपाट छूटा सह, सब सज्जनको पड्यो बिछोय तो || भूषण राते तस्कर हर्यो, इहां पण कोइ दिधो छे दगोय तो ॥ क० ॥ ८८ ॥ गुजरान किम चलावस्युं, कुटंब पालण किम करूं मोय तो ॥ वितं बिन यादर कुण दिये, वस्त्र फाटा देशी कहो कोय तो ॥ मांग्यो जावे नही कि कने, इम नृपनो मन छे दूमणोय तो ॥ मुरछा लहे सावध हुवे, तेह दुःख एक ज्ञानी रह्या जोय तो ॥ क० ॥
१ चोर. २ घन.