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( २७ ) उघाडीया, बरामें उतर्या तीन घर तो ॥ मार्ग दासी बतावती, सुरंगमे उजाले अनुसार तो॥ अर्ध जोजन ते श्राविया, उर्ध्व सिल्लाने करी दासी पर तो॥ नूप कहे इत्ता दिनमें, बाइ मार्ग यो न बतायो यो सैर तो ॥ त्रि०॥६५॥ चेटी कहे न बतावीये, काम अावे यों उपजे जद डर तो॥ के महारी माता जाणती, ते मुज बताइ गइ मर तो ॥ आगे गुफा अध गाउनी, जिमणी नीतने जावजो धर तो ॥ पागल अटवी श्रावसी, धारी चारी निकल्या तज दर तो ॥ त्रि० ॥ ६६ ॥ दासी सिल्ला लगायने, पाछी फिरी दिल करती फिकर तो ॥ाइ सूती निज ठाम ते, नृपती गुफा में करें चरतो॥ शिर फुटे ठोकर लगे, कठे खाडामें पग जावे पड तो ॥ सरपादी दीर्घ जीवडा, ग
१ उपरकी. २ गुप्त ३ कोश ४ भूवरो.
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