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( ५९ )
रूप राखो दिल दंड तो ॥ रोयांथी बच्छ यांख्या दुःखे, औषध नही पास संगो नही फंडे तो ॥ कांई करूं म्हारो वस नही, इम समजाइ राख्यो तस बंडे तो ॥ ते अंग संकोच चुप रह्यो, इतरे केतू रह्यो विहँडै तो ॥ जो० ॥ १५० ॥ धायजी भूख लागी घणी, पेटमें नही म्हारे जरासो अन्न तो ॥ जीव घबरावे महारो, कुल व्या कुल होवे है मन्न तो ॥ चेन पडे नही दिए नरे, घर में नहीं माइ दिसे छे कन्न तो ॥ इम कही रोवण लग्यो, राणी समजावे उगसी - ब्बी दिन्न तो ॥ जो० ॥ १५१ ॥ बेटा उनी दाल लावस्यूं, घृत सहित हूं लास्यू उदन्नं तो ॥ पेट जरीने जीम जो, फलाणी मुज कह्यो थो कथन्नं तो ॥ धायजी थें काल केता था, बेटा तुजने जिमावस्यूं
१ पइसा २ मस्ती ३ चिफ ४ चावळ. ५ बात.