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(१४) सुखे २ काल अतिक्रमें दृढतानो फल लियो पै. गन तो॥अप्सता बधी घणा लोककी,धर्म एक जाणे जीवन प्रान तो ॥ सु० ॥ ३२ ॥ दोनु नाइके प्रीती घणी, * दीरने नीर परे चाहंत तो ॥ एक दिन राय जीतारीजी, परनव गया हुयो त्रायुको अंत तो॥ राजा रूढ हुया बिना, पहला रायको तन नही दहंत तो ॥ नीमसेण कहे में बेठू नही, लघू बंधव तुम पूरो खंत तो ॥२॥३३॥ हरीसेण कहे में सोनू नही, बृध नाइ तुम होवो महंत तो ॥ में रेवस्युं तुम सेव में, हुकम प्रमाणे
* सवैया-क्षारकी संगत नीर करी, तब दे गुण आप समान किया है। ताव लग्यो जब उन क्षीरनको, जाल्यो नहीं पग आप जल्यो है ।। नही देख के नीर गिर्यो पद्माकर, कूद अग्न माहे आन पड्यो है ।। हीर अली प्यारे वेग मिलो तुम, मंत्री कियोतो ऐसो कियो है ॥ १ ॥ १ जावे. २ द्ध. ३ बेठया.