Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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(११६ )
सेठ कहे तुम पुत्र जमांगा, काला मुग दिल हरषाणी ॥ .. सवानव मासे बालक जाया, तेजपुंज्य जिम दिनकारे।। लक्ष्मी.॥२॥ कुल देवीका आसण कम्पा, अवासे जो झट वहां आइ । ससकोट विच मेहल बणाया, पटऋतू सुख जिस माइ ॥ उस्में वृद्धी होवे कुंवरजी, लक्ष्मीपत नाम दीया ठाइ। वय आये बहोत्तर कला पुरुषकी, महेल अन्दर देबी भणाइ। .. रुपवंत आठ नारी परणाइ, देवी पूरे इच्छित सारे ॥ लक्ष्मी.॥३॥ आठ महीला संग सुख भोगवे, जातो जाणे नही काल । प्रहरा देवी रक्खा दरवज्जे, भीतर पुरुष न आवे चाल ॥ एक दिन आयु पूर्ण हुवेसे, धन्ना सेठ गये दूजे महाले । दासी जाके कहे कुमरको, तुम पिताजी मरगये हाल ॥ कुंवर कहे मरेपीछे आयंगे, मरणकी समजण नही ज्यारे।लक्ष्मी.॥४॥ श्रीमती स्त्री दासोपे, आँख निकाल दीवी धमकी । दासी भगगइ मेहलके नीचे, अती वो दिल अन्दर चमकी । गुमास्ता मिल किया मृत्यू कारज, कुंवरकी खबर कुछ नही पाइ॥ सेठ विना कोन काम चलावे, फीकर पड़ा है. सबताइ । पुरुष अन्दर जाने नही पावे, कुंवर बाहिर नहीं आतारे लक्ष्मी,॥५॥ सबी गुमास्ते दकानो बन्धकर, चपा नगरीमें हुवे भेले ।
१ सूर्य. २ परभवमें.
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