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अंत अवसर आलोय निन्दके, किया सबनि संथारा। आठों स्त्री अनुत्र विमाने, केवली निरंजन पद धारा ॥ और जणे गये देवलोकमें, साठ भक्त अणसण आया। पूर्ण पुण्यसे लक्ष्मी ऋषिजी. किंचित मात्र नहीं दुःख पाया ॥ ऐसी जाणके निर्वद्य पुन्यमें, दरिल करो मत लगारे॥ल.॥ २९ ।। यह अधीकार कथा ग्रन्थमें सुणाहै जैसा बणाया। जिनाज्ञासे विरूध होयतो, मिच्छा दुकृत दं भाया । उनासो छप्पनके साले, अहमदनगर चौयासा ठया। सर्द पूनमके दिन सम्पूर्ण, पुण्यरास उमंगे गाया ॥ जय २ रहोसदाजैनधर्मकी, अमोलख ऋषियों कहतारे। ल.॥३०॥
श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके बालब्रम्हचारी मुनी श्री अमोलख ऋषिजी कृत, पुण्यप्रभावक श्री लक्ष्मी
ऋषिजीका चरित्र सम्पूर्ण.
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