Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 116
________________ (२१४) तस्स सरण रही ग्रंथ ए, अमोलऋषी बणावीयो ।। *संवत् रवी पूरन तपन, महावृत काया अावीयो॥ बडो मास ने बरे वारे, पूर्णस्थिती जोग थावीयो॥४॥ दक्षिण देश श्रेष्ट में, श्रावलकुटी ग्रामें रही ॥ रचना करी ये ढालकी, श्रोता सुणीने गह गही ॥ गावे गवावे सुणे सुणावे, ही श्री ते लही ॥ जयजय रहो जैन धर्मकी जिहांलगरवी इंदू मही।।५।। परम पुज्य श्री कहानजी ऋषिजीके सम्प्रदाय के महंत मुनी श्री खूबा ऋषीजी तस्य शिष्य आर्य मुनी श्री चेना ऋषीजी तस्य शिष्य बाल ब्रम्हचारी श्री अमोलख ऋषीजी विरचित शुनाशुन कर्भ फलका बताने वाला जीमसेण हरसेिण चरित्र समाप्त. * संमस् १९५६ ज्येष्ट वदी अमावस्या गुरुवार

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