Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 115
________________ उपसंहार. ॥ हरी गीत.॥ ये कर्मकी रचना रची, सुणीसार ग्रहो श्रोता सहु ।। दगा दानंत्रायसें, नीमसेण सही विपति बहु ॥ इम जाण डरीये कर्मसें, गत कर्मसें होजो लहु ॥ तो तिणपरे सुख पावसो, ये सार थोडा में कहुं॥१॥ अल्प बुद्ध अनुसार, कथा अाधार ए रचना करी॥ युक्त सम्मास मिलाइयो, इण माय जो मिथ्याचरी॥ तो मिथ्या दुष्कृत दे कहूं, कोविद शुद्ध कीजोखरी॥ श्रोतागण दो नेट तो, शक्तयनुसार लो व्रत वरी॥२॥ श्री वीरके पटानु पाट, ज्ञानी गुणी हुवा महा मुनी। गुज्य श्री कहानजी ऋषी, सम्प्रदाय श्रादी में सुनी॥ तेमां श्री खूबाऋषीजी, उत्कृष्ट क्रिया घर गुनी ॥ मम गुरु श्री चेना ऋषीजी, नमत हूं में पुनी पुनी॥३॥ महा उपकारी महात्मा,रत्नऋषीजी मुज पढावीयो॥

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