Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 113
________________ नारी सुशीला सती, दासी नद्र, क्षितिप्रतिष्ट नयर तो ॥ दास पुत्र दो ए थया, धर्म करणीथी जया नरेश्वर तो ॥ ध० ॥ २८२ ॥ दानांतराय दिया थकी, तीन वार मरण लाग्या फास कर तो॥ दान दिया सुखीय हूया, कर्मनी रचना एम विचितर तो ॥ सुणोने चेतो नवी तुमे, कर्म बंधन को धरो दिल डर तो॥ पूर्वला बांध्या तोडीये दूस्तर संसारसे जावो तर तो ॥३०॥ २८३॥ सुणी भीमसेणजी धूजीया, वैराग्य नाव ते मन माहे लाय तो ॥ वंदना कर घर गया, पत्र लिखी कासीद पठाय तो॥ वितिप्रतिष्ठ पुरे गयो, विजयसेण पट्ट राणीने चेताय तो ॥ बेन बेन्योई दि. दा लेवे, सुणी दोनो श्रेवंतीये पाय तो॥धः॥ ॥ २८४॥ पूर्व नव रचना सुणी, ते दोनोइ के रागी थाय तो ॥ प्रोत्सब राज तणो करी, देव

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