Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 111
________________ (१०९) ॥३०॥ २७६ ॥ विजयसेण गया निज पुरे, र. हे सुखे करे राज संजाल तो॥ हरीऋषी विनय करी, अंग पूर्व नणी हुया ज्ञाने लाल तो ॥ श्रास्म निंदा तपस्या करी, कर्म तणो कचरो न्हाख्यो बाल तो ॥ दपक श्रेणी चड कैवल लियो, मो. सब कीयो सुर दीर्घ पाल तो ॥ ३० ॥ २७७ ॥ घणा मुनी संग विचरता, जिनमत थापे मिथ्या तम टाल तो ॥ श्रेवंतपुर पधारीया, बधाइ जीमने दी वनपाल तो ॥ सहु पंवारे वंदीया, मुनी उपदेश नणे तिण काल तो ॥ सुणो पूर्व नवनी कथा, बांध्या कर्म ते नोगव्या हाल तो ॥ घणा ॥ २७८ ॥ श्रीपुरमें तुम श्रेष्ठ था, श्रीपाल लो. जी घरे घणो माल तो ॥ में पाडोसी गुणचंद्र थो, धर्म मिती अापणे एक ताल तो ।। में हार मोल लियो मोतीको, थांने बतावा अायो घर चाल तो॥

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