Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 110
________________ (१०८) राज जोम नोगयो सुख नूर तो ॥ पाछे संयम सीजीये, या केण म्हारी करो मंजूर तो । हरीजी कहे राजथी, जन्म मर्ण दुःख नही होवे दूर तो ॥ संयम पादरी तप करी, अखंड राज लेस्या शिवपुर तो ॥धः ॥ २७४ । इम प्रश्नादी घणा हुया, नहीं मान्यो मांड्या मोत्सव स्फुर तो। घाडंबरे आया बागमें, मुनी वंदी पाया इशाण णूर तो ॥ पंच मुष्टी लौचन करी, नेष पेहर श्राया गुरु हजूर तो ॥ जिन दिशा धारण करी, वंदी जुटव घरे गया तर तो ।। ध० ॥ २७५ ॥ हरी ऋषीजी स्था साहू, दूजे दिनाया नीम नूपाल तो॥ नाइ बंद्या देशना सुणी, बारा व्रत धार्या तत्काल तो॥ विजयजी पण श्रावक हया, यथा सक्त मर्याद करी उजमाल तो ॥ वंदना कर गया निज घरे, ऋषीराय विहार कर्या नू महाल तो॥

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