Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

Previous | Next

Page 108
________________ (१०६) उत्कृष्ठा पुन्य योग्यथा, दृष्टांत दश जिम नर तन मिलंत तो॥ध० ॥ २६८ ॥आर्य क्षेत्र उत्तम कुले, जन्म लियो आयु अखंडत तो॥ इंद्री श. रीर निरोगता, सद्गुरु शुद्ध सोध कहंत तो ।। श्रधा राखी तिम करो, तो इण जीवको काज सरंत तो ।। पुद्गलमें राचो मती, इणको स्वभाव मिली विछडंत तो ॥ ३० ॥ २६९ ॥ स्वपना जैसी सायबी, जागी जोयां कांइ न रहंत तो ॥ अध्रुव अनित्य अशाश्वती, मुढ अज्ञानी इणमें मुरजंत तो ॥ ज्ञानी तजी धर्म आचरे, सूत्र चारित्र दो भेद कहत तो॥ मूत्र मुणी ज्ञानी बणो, चारित्र साधू श्रावक दो नेदंत तो ॥ ध०॥ ॥ २७ ॥ पंच महाव्रत साधूका, बार व्रत श्रावकधी अंत तो॥ यथा सक्त शुधाचरो, जिम सुख १ अस्थिर.

Loading...

Page Navigation
1 ... 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126