Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 109
________________ (१०७) मिले निजिष्टित कंत तो॥ या कहणी करसे जिके, अक्ष्य अनंत ते सुख पावंत तो ॥ सुख होने जिम कीजीये, उपदेश इम मुनीश्वर सुणावंत को ॥३०॥ २७१ ॥ इम उपदेश सुणी नवी, वैराग्य व्याप्यो हृदयमां पूर तो ॥ केइक समकित श्रादरी, केइ श्रावक व्रत किया मंजूर तो ॥ प्रपदाअाइ तिहां गइ,नृपादि सर्व परवार संगमूर तो॥ हरसिणजी तिहाइ रह्या, कहे करजोड सत्य वचन हजूर तो॥ २७२ ॥ श्रध्या प्रतीत्या मन रुच्या, संसारने जाण्यों में कूर तो॥श्राज्ञा लेइ संयम ग्रहूं, मुनी कहे शीघ्र कीजीये नूर तो॥ वंदना करने चालीया, नाइजी पास आया हर्ष नूर तो। अाज्ञा दिजे कृपा करी, बांध्या कर्म करूं चक्क चूर तो॥ध० ॥ २७३॥ नीमजी कहे तूं. लघू भने, १ लाहोना.

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