Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 84
________________ (८२) इण पुरमें जावाकी इच्छाय तो ॥ नृप मुक्र पगठंब्यो, मुजने तारो गुरुजी कृपा लाय तो ॥ मूजतो आहार शिल्लापरे, परकाज लायो म्हारी ने सराय तो ॥ शु० ॥ २०७ ॥ अनुग्रह रांकपे कीजीये, लीजीये जेतो अापरे होवे चहाय तो ॥ ऋषीवर अवसर देखने, शुद्ध निर्दोष देख्यो बुद्धि लगाय तो ॥ साताकारी खपतो मिले, तो ते ग्रामने क्यों फरसाय तो ॥ भ्रमर निदा ग्रहवा नणी, पातरा कहाडी मेल्या ते ठाय तो ॥ शु०॥ ॥ २०८ ॥ नीमजी अती हर्ष पाणने, यत्नाये लीयो खादिम ते हात तो ॥ त्रिकर्ण शुद्ध उलट नावथी, मुनी पात्र माहे अाहार बेहरात तो॥ चित वित पात्रं उत्तम मील्या, संसार प्रत नूपको १ माथी. २ मलकी. ३ मिठाई ४ उलटभाव. ५ शुद्ध आहार. ६ मुनिराज.

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