Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

Previous | Next

Page 96
________________ ( ९४ ) मकार तो || हरीमेण चित उचकियो, राजसायत्री लाग जयंकार तो ॥ किहांइ सुहावे नहीं मारती यावे मनमें अपार तो ॥ सुतां जक्क पडे नहीं, छातीपे मेल्यो जाणे कोइ जार तो ॥ पुन्न फल्या शुभ सह फले ॥ ये त्र्यांकडी || २३७ ॥ खाणो पिणो ने पेरणो, सररिनी तजी सार संभार तो ॥ जेष्ट पंधू मनमें वस्यो, कदीक रोवे मोठी बुंब पार तो | मुशदीयादि समजावर, इम किम करे। च्याप शिरकार तो || राजकाम किम चालसे, कान नही धरे बात लगार तो ॥ पु० ॥ २३८ ॥ कदीक मारे पत्नी जणी, तूं मुज दी खोटी सीख दे गार तो ॥ कुंती निकाली राजसे, पश्चाताप करे केइ प्र कार तो ॥ यरे में पापी कृत्वनी, विश्वासघाती नीच चंडार तो ॥ रंडाने कये लग्यो, पिता समान नाइने दियो कार तो ॥ ५० ॥ २३९ ॥ में बेठो

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126