Book Title: Bhimsen Harisen Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal RamlalPage 97
________________ राजगादीपे, शरम नपाइ धीठगीवार तो॥ नाइ२ करता फिरे, नगरीना सोच करे नर नार तो।। उदासी व्यापी देशमें, याद अावे नीमसेण नूपार तो ॥ चोकस करवा भ्रातनी, परदेशे नेज्या पाला सवार तो ॥ पु० ॥ २४०॥ नमिसेण बेठ्या सना नरी, दोनु कुमर उना हुया तत्काल तो ॥ मुजरो करने इम कहे, शैन्य तैयार हुइछे अश्व पाल तो।। पधारो राज लेववा, काकाकू कर देवां नक्षण काल तो ॥ गत काल स्मरण हुया, म्हाणा बदनमें उठे छे काल तो॥ पु० ॥ २४१ ॥ म्हाको राज म्हाने मिले, तब म्हाणा मन होस्ये खुशाल तो ॥ कुमर तणो जोष देखने, खुशी हुवा घणा भीम नृपाल तो ॥ राज लेणे जैसा हुवा, बुद्धी तेज बल देख विशाल तो ॥ नूप कहे शैन्य सज करो, राजलेस्या आपण एक ताल तो॥ पु०॥ २४२ ॥ विजयPage Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126