Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 105
________________ (१०३) टाल तो ॥ धर्म तणी कथा सांगलो । ये प्रांकडी ॥ २६० ॥ आचार सुत्रं सरीरकी, वचनं वाचना श्रुति विशाल तो ॥ उपयोग संग्रह संपदा, पाठ ये घारक करत संजाल तो ॥ संयम सतरे दुवादश तपे, अहो निश तिणमें रहता लाल तो॥ उपदेश अमीरस धारथी, जव्य हृदयमें वैराग्य दे घाल तो ॥ २६१ ॥ सुखे २ अनुक्रमे विचरता, पधार्या अवंती नव्य पुन्य नाल तो ॥ कुसुमश्री उद्यानमें, उतर्या आज्ञा लेइ वनपाल तो ॥ मासुक वस्तु जाचने, तिहाथी लीयो खपतो माल तो॥ गुर्छ गम्म सम समण मिली, ज्ञान ध्यान कर रह्या उछाल तो॥१०॥२६२॥ केइ विनय वयावच्च करे, दुक्रश्नं से तोडे कर्म,जाल तो ॥ स्थैवर तपश्ची बहूँसूत्री, अापणी यात्म १. चारे. २ अमृत. ३ निरजीव. ४ बहुत मिलके. ५ कठीण मासण. ६ वृद्ध. ७ पंडित.

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