Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 15
________________ ( १३ ) हर्या करवा हरौन तो ॥ सु० ॥ २९ ॥ तो पण जरा चल्या नही, डोल रह्या ते मेंरू समान तो ॥ प्रसन्न हूइ विर्बुद्ध कहे, मांगो इति वरदान तो ॥ नूप कहे निर्जर सुणो, चिंतामणी लीयो धर्म पहचान तो ॥ न रही इच्छा बीजी किसी, तुम पण येही करो प्रमान तो ॥ सु• ॥ ३० ॥ धर्मदृढ उपकारी संतोषी, इत्यादि गुणे जाण्या नृप नागवान तो ॥ नाम कायम रहवा तिहां, सहकार वृक्षको कियो मंडान तो ॥ नित्य पॅट फलते अर्पवे, यपूर्व रस नही रुज गुणं खान तो ॥ प्रणमी पग तें सुर गयो, रायजीने गुरूजी सम जान तो ॥ ॥ सु० ॥ ३१ ॥ नृप तस फल नित जोगवें, दोनो पुत्रको पे तें खान तो || राय अम्ब तिथी बज्यो, अन्य नहे तेह बान्ध्यो निदान तो || १ देवता. २ देउ. ३ अम्ब. ४ छे. १ रोग. ६ लेवे, ७ बंदोबस्त.

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