Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

Previous | Next

Page 23
________________ (२१) हतो खरी, नही देख्या थारां सुख में धाप तो || त्रि० ॥ ४८॥ हरसेिण राणीने लेयने, प्राय बेठ्या बार गोखडा माय तो ॥ सुरसुन्दरी पाछी चली, हाथ पकड तस पास बेठाय तो।। राज पाठ में नोगवू, नीमसेणने पैठाणे को नाय तो ॥ बिख्यात छ हूं विश्वंमें, स्ववस छु में करूं जे चाय तो ॥ त्रि० ॥ ४९ ॥ और राजा कहो किम हुवे, तुं पटराणी प्यारी सवाय तो ॥ उणारथ नहीं किजिये, मरबाकी न निकालणी वाय तो ॥ ते कहे राजा यों नहीं बजे, व्यर्थी क्यों थे रह्या फुलाय तो ॥ नोकर छो जेठजी तणा, अहोनिश थारां हम्मालीमें जाय तो ॥ त्रि० ॥ ५० ॥ काण राखो बडा नाइकी, वां पण थाने दिया पोमाय तो॥ देवा जिसा सुख भोगवे, सारी फिकर थारे लार १ जगतमें.

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126