Book Title: Bhimsen Harisen Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal RamlalPage 46
________________ (४४) थर तो ॥ दिन उग्या उनी रही, राणी पास :डावे सहु घर तो ॥ मोटी घाघर दे पाणी नणी, गांव बाहिर दूर जे सरवर तो ॥ घडो नयाँ शिर उपरे, लचके गरदन घूजे थर २ तो॥ क० ॥ ॥१०९॥घडोपडे धरणी पडे, पाणी ठूले बरतन जावे फूट तो ॥ रुदन करे राणी पायने, सेगणी गाली देवे छे छूट तो ॥ बालक जरा चूके काम तो तस पापणी न्हाखे छे कूट तो ॥ बर्तन सर्व मंजावइ, राणीथी पूरा मंजे न स्फूट तो॥क० ॥ ॥ ११० ॥ तिकण थालकी कोरथी, हाथ चिराय तस बांधे. चीरूंट तो काम जरा बिगड्या थका, गाल्या बोली कालजो लेवे चूट तो॥ राणी समता सेवन करे, किणही तरेह ये दिन जावे खूट तो। बांद्या जो इहां नोगवां, थोडा काले कर्म १ स्वच्छ. २ फाटा कपडा. ( चिंदी )Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126