Book Title: Bhimsen Harisen Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal RamlalPage 81
________________ तिण दिने, पुरीमंडल हुया ध्यान पाडत तो ॥ ॥शु०॥ १९९ ॥ प्रतिलेखण शुद्धी करी, काष्ठ पत्र कोली माहे ठवंत तो ॥ करफरश्यौँ जंघथी, त. क्षिण गगन गती ते चरंत तो ॥ कितीप्रतिष्टकने भावीया, तिणहीज तरूं तले उतरंत तो ॥ फांस लेतां जोइ नर जणी, म, मैं, इम ते शब्द उच्चरंत तो ॥ शु० ॥२०० ॥ नीमजी देखा अश्चर्य थया, मनमें अानंद उपनो अथाग तो॥ रोम २ हुल. सित्त हुया, जाग्यो धर्मश्नेह अनुराग तो ॥ शंकी नेण नीचा किया, जत्नाकर अायो मुनीवर प्राग तो॥ पाचू अंग नमाइने, लुली २ मुनीवर तणे पग लाग तो ॥ शु० ॥ २०१॥ फांसी देखी मुनीवरू, पुछे यो कांइ करे महा १ दो प्रहर. २ लक डेका. ३ हाथ लगायो. ४ चश्या. ५ शाह. ६ मत गत. ७ दस्त्र मुख ढाक. -Page Navigation
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