Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 80
________________ (७८) अनाथ जीवारी करुणा धरंत तो॥ समं दम ख. म नम आतमा, जप तप स्पथी कर्म य करंत तो ।। शुद्ध दानतणी महिमा सुणो॥ ये अांकडी॥ ॥ १९७ ॥ सदा रहे अटवी विषे, ज्ञानादि त्रीगु. णमें रमंत तो ॥ मनुष्य तिर्यच ने देवता, नयंकर उपसर्ग समंत तो ॥ कुंद्यादि परिसह सहूँ, सहास घर शुन नाव सहंत तो ॥ कुर्म परे इन्द्री गोपवे, वीरादी आसने अात्म दहंत तो॥शु०॥ १९८॥ महा तप परनावथी, जंघा चारण लब्ध उपजंत तो॥ पारणे दिन जावे ग्राममें, शुद्ध निवेद्यं ते नि का ग्रहंत तो ॥ प्रांत प्रांत लुख अाहार कर, फि र बांसठे नक्त तपशाचरंत तो ॥ पारणो शायो १ शत्रु मित्रपे समभाव राख. २ इंद्रियांको वसमेकरी. ३ परिसहसहे. ४ नम्रभाव. ५ उद्यम. ६ ज्ञान, दर्शण. चरित्रः ७ सर्व. ८ काछवा. ९ वीर आदि असनसं. १० निरंदोषी. ११ मांस भक्षण.

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