Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 79
________________ ( ७७ ) चिंतीने पागडी बंधी डार तो ।। सिरणी रखी सिलापरे, फांसीने नीचे खड्यो ते वारतो ॥ नवकार समय चिंतमें, अमोल नृप पुन्य प्रगटे ये वार तो ॥ जो० ॥ १९६॥ ॥ दुहा ॥ शुने स्थिती परिपक्क हुये, मिले शुभ संजोग ॥ तेथी शुभ फल परगटे, ते सुणीयो गुणी लोग ॥१॥ अचिंत्ये महिमा दानकी, जे सुपात्रे देवाय ॥ दुःख दुर्भाग्य दूराकरी, व्यय सुख प्रगटाय ॥ २ ॥ ढाल - सतीने सिरोमणी अंजना ॥ ए देशी || ति अवसर गिरीवन विषे, महा तपोधन संयम वंत तो ॥ मास २ तप निरंतर करे, क्रोधादि क पाय को कर अंत तो ॥ चरणं करणं गुणसागरूं, १ अशुभ कर्मकी स्थिती पुरी हुया. २ विचारमें न आये ऐसी. ३ सदा करणेकी क्रिया. ४ वक्तसिर करनेकी क्रिया.

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