Book Title: Bhimsen Harisen Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal RamlalPage 67
________________ ( ६५ ) रण ये कुल छे मरनार तो ॥ जो० ॥ १६६ ॥ करुणा जाव मन लायने, दोडी या तिए कने तत्काल तो ॥ कटावी कहाढी करे थकी, ते फांसीनो किनो निकाल तो ॥ मधुर बचने संतोषी - यो, विश्वासीने मिलाइ छे तोल तो ॥ अति दुल्लन नर देह मिली, कि कारण एथी करे टाल तो ॥ जो० ॥ १६७ ॥ नृपती वीति वारता, संप मा किया योग्य हाल तो || सेठ कहे इम मत करो, सहास राखो धैर्यनी धर ढाल तो ॥ सहास श्रीरामजी, सीता पाइ करी अँरीका कू· हाल तो ॥ नल दमयंतीने मिल्या, गयो थको पाछो मिल्यो थाल तो ॥ जो० ॥ १६८ ॥ हरिश्चंद्र बेंच्या पुत्र नारने, सहासथी टल्यो दुःख विक्राल तो || पांडव चाकर रह्या परघरे, तेरे बर्षे १ हाथसे. २ हाथ ३ वैरीका.Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126