Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

Previous | Next

Page 65
________________ चार तो॥ समजावण वालो को नही, हा हा गती केवी ये दुःखकार तो ॥ सुखी होवाने हूं खपू, तिम २ दुःख आवेछे अपार तो॥ इम जो सामे उनो रहु, घस्की प्राण छोडे ये इणवार तो ॥ जो० ॥ १६१ ॥ स्वपनामें नही जाणतो, तेहवो टूटी पडयो सिर पहाड तो ॥ इण जितबथी मरणो नलो, चल्या तिहांथी करी निरधार तो ॥ चौधाराांश्रु बर्षता, हियडो धैर्य धर न लगार तो॥ मनमाहे कूरे घणा, शिध्र पाया ते ग्रामने बार तो ॥ जो० ॥ १६२ ॥ वडना तरुतले भावीया, सिर पगडी बांधी तस डार तो ॥ निरासे निश्वाशा न्हाखने, सिद्ध साधूने करी नमस्कार तो॥ चार सरणा चितमें धर्या, निशल्प इम करे छे उचार तो ॥ खमाउं सब जीवने, त्रिकरण शुद्ध वैर ...१ घापऊपर

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126