Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 66
________________ - (६४) नहीं मन मकार तो ॥ जो० ॥ १६३ ॥ में अ. पराधी छु सर्वको, निश्चयथी बदलो देणहार तो।। अनुग्रह कर माफी करो, मुज सरिखा रांकपर मेहेर धार तो॥ महारा बांद्या में नोगव्या, दोष न इणमें किणरो लंगार तो ॥ व्रतमें जाण अजाणनें, जे कोइ लाग्यो होवे अतीचारतो॥जो० ॥१६४॥ मुजने लद अठारही, सहश्र चौबीस एकसो बीस वार तो ॥ मिच्छामी दुकडं होवजो, इम कही प. रमेष्टी नाम उच्चार तो ॥ नेत्र नीर वर्षावता, गळा माहे ते फांसो घार तो ॥ लटकण लग्यो ते अव. सरे, थोडा दूर उतर्या साहूकार तो॥जो०॥१६५॥ शीत निवारण कारणे, तिहां करायोतापप्रचार तो॥ उद्योत हुयो दशों दिशा, धनदत्त जोवे छे दृष्ट पसार तो ॥ थोडी दूरने अंतरे, लटकंतो देख्यो फांसी फमनार तो॥ अश्चर्य अती पायो मने, किण का

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