Book Title: Bhimsen Harisen Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal RamlalPage 45
________________ ने मन लावतो, आहार दीजे नित्यप्रत पेट जर तो॥ दुःख किंचित न दिजीये, इम कही ते गया दुकाने चर तो ॥ क० ॥१०६॥ नद्रा नरी गुमानमें, तूंकारे बोलावे किहां आदर तो ॥ लारी जारी कररी तें, इम करावे काम सारोही घर तो॥ वीसामो दिण लेवा दे नही, नित्य खावा देवे चार नाकर तो॥ ते पण ठंडी अधसीकी, कुण देवे घी दूध साकर तो ॥ क० ॥ १०७॥ लोक देखा वू नाम दूधको, कुलडे घाली देवे खाटी तक्कर तो। सवा प्रहर राते छुट्टी देवे, प्रहर निशांमें उठावे हेला नर तो ॥ बाटो पीसावे बेंचवा, राणी न समजे घट्टी केम फिर तो ॥ फेर्या हाथे छाला हुवा, ते फूटीने रक्त प्रावे कर तो ॥ क० ॥ १०८ ॥ बंध राख्याथी कूका करे, घट्टीपे जमगया लोहीना १ रोटा. २ छाछ. ३ रात्र. ४ पक्कार. ५ पुक्कार. ( हेला ) -Page Navigation
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