Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 43
________________ (४१) हारा, बाठोही हुय काल स्वाधान तो ॥ क० ॥ ॥१००॥ धनी लुगाइ दोनो रह्या, रहवणने छ मोटा मकान तो ॥ चारी सुखे मुज घर रहो, दो रुप्या महीनो पेट नर ान तो ॥ थे रेवजो दुकानपे, तुम नारी करस्ये घर कारखान तो ॥राजा सुण राजी हुवा, मान लीवी सेठजीकी जबान तो॥ क०॥ १०१ ॥ ढाल तरवार तिहां घरी, नूपत शरमी करे उचारतो॥ नूखा छां चारी जीवडा, तीजो दिवस अाज थाय पसार तो॥ सेठजी हर्षीने दिया, मुंगफली फुटाणा गुड प्रहार तो॥ खोलामें ले राजा चल्या, मनमाहे धरता हर्ष अपार तो ॥ क० ॥१०२ ॥ तिनी बैठा तिहां प्रावीया, दूरथी पोटली बताइ घर प्यार तो॥ पहला तनुजने लिखायने, बच्यो दंपती खायो ते वार तो ॥ संपुटे राय पाणी ग्रही, पायो पीयो न

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