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भूमिका. पनमें से कई एक की सूचियां भी छप गई हैं. जनरल कनिंगहाम ने अपने संग्रह के भारतीय माचीन मिकों की चार जिल्दें। और लंडन के ब्रिटिश् म्यूज़िम् ने अपने संग्रह की सीम' जहदें छपवा. ऐसे ही पंजाब म्यजिम (लाहोर), इंडिअन् म्युजिम्मादिक मंग्रहों के सिकों की चित्रों सहित सधियां छप चुकी हैं. इद्धिमन् ऍटिकेरी, पार्किऑलॉजिकल सर्षे की मित्र भिन्न रिपोटौं, एशिमार्टिक सोसाइटियों के जर्नलों तथा कई स्वतंत्र पुस्तकों में भी कई सि प्रकट
जप सकार अंग्रेजी की तरफ से प्राचीन शोध का प्रशंसनीय कार्य होने लगा तब कितने एक विद्यामी देशी राज्यों ने भी अपने यहां प्राचीन शोधसंबंधी कार्यालय स्थापित किये. भाषनगर दरबार ने अपने पंडितों के द्वारा काठियावाड़, गुजरात और राजपूताना के अनेक शिलालेख
और दानपत्रों की नकलें तय्यार करवा कर उनमें से कई एक 'भावनगर प्राचीनशीधमंग्रह' (भाग प्रथम) और भावनगर इनस्क्रिप्शन्स' नामक पुस्तकों में प्रकट किये. काठियावाडके पोलिटिकल् एजेंट कर्नल वॉटसन का प्राचीन वस्तुओं का प्रेम देख कर काठियावाड़ के राजाभों ने मिल कर राजकोट में 'वॉटमन् म्यजियम' स्थापित किया जिसमें कई प्राचीन शिलालेखों, दानपत्रों, सिको
और पुस्तकों आदि का अच्छा संग्रह है. माइसोर राज्य ने ऐसी वस्तुओं का संग्रह किया इतना ही नहीं किंतु प्राचीन शोध के लिये आर्किऑलॉजिकल विभाग स्थापित कर अपने विस्तत राज्य में मिलनेवाले हजारों शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों को 'एपिमाफिया कर्नाटिका' नामक ग्रंथमाला की कई बड़ी बड़ी जित्दों में प्रसिद्ध किया भोर ई.स.१८८५ से अपने प्राचीन शोध विभाग की मालाना रिपोर्ट भी, जो बड़े महत्व की हैं, छपाना प्रारंभ किया. या राज्य ने प्राचीन वस्तुगों का अच्छा संग्रह किया जिसके प्राचीन शिलालेख और दानपत्रों को प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. फोजल ने 'एंटिकिटीज़ मादी चंया स्टेट' नामक अमूल्य ग्रंध में प्रसिद्ध कर प्राचीन लिपियों का अभ्यास करनेवालों के लिये शारदा लिपि की बड़ी मामग्री एकत्रित कर दी. ट्रावनकोर तथा हैदराबाद राज्यों ने भी अपने यहां वैसा ही प्रशंसनीय कार्य प्रारंभ कर दिया है. उदयपुर (मेवाड़), झालावाड़, ग्वालिभर, धार, भोपाल, बड़ौदा, जूनागढ़, भावनगर आदि राज्यों में भी प्राचीन वस्तुओं के संग्रह हुए हैं और होते जाते हैं.
इस प्रकार सर्कार अंग्रेजी की उदार सहायता, और एशिमाटिक सोसाइटियों, देशी राज्यों, माथारण गृहस्थों तथा विद्वानों के श्रम से हमारे यहां के प्राचीन इतिहाम की बहुत कुछ सामग्री उपलब्ध हुई है जिसमे नंद, मोय, ग्रीक, शातकणी ( अध्रिभृत्य), शक, पार्थिचन्, कुशन, क्षत्रप, अभीर, गुप्त, हण, योद्धेय, बैस, लिरिवि, परिव्राजक, राजर्षितुल्य, वाकाटक, मुखर (मीवरी),मैत्रक, गुहिक पापो. स्कट (पावड़े), चालुक्य (सोलंकी), प्रतिहार (पड़िहार), परमार, चाहमान (चौहान), राष्ट्रकट (राठौड़), कच्छपघात (कछवाहा), तोमर (तंवर ), कलचुरि (हैहय), कूटक, चंद्रात्रेय (चंदेल), यादव, गूर्जर, मिहिर, पाल, मेन, पल्लव, चोल, कदंब, शिलार, सेंद्रक, काकतीय, नाग, निकम, बाण, मत्स्य, शालकायन, शैल, मूषक, चतुर्थवर्ण ( रेडि) आदि अनेक राजवंशों का बहुत कुछ वृत्तांत, उनकी वंशावलियां एवं कई एक राजाओं का निश्चित समय भी मालूम होता है इतना ही नहीं, किंतु अनेक विद्वानों, धर्माचार्यों, धनाढयौं, दानी, वीर भादि प्रसिद्ध पुरुषों के नाम, उनके वृत्तांत तथा समय
१. 'कॉइन्स ऑफ एन्श्यंट डिमा': 'कॉन्स मॉक मिडिएयर रिमा': 'कॉइम्स ऑफ वीडोसीधिअन्स'; और 'कॉइम्स ऑफ दी लेटर डासिथियन्स'.
. 'दी कॉइन्स ऑफ दी ग्रीक र सोथिक् किग्ज़ ऑफ वाकदिा पंडांडिया', 'दी कॉन्स ऑफ दी मान्ध्र डाइ. नेस्टी, दी बेर्सन पत्रप्स, वी कुटक राइनेस्सी पॅड दी मोघि डाइनेस्टी': और 'दी कॉइन्स ऑफ वी गुप्त राइनेस्टीन'.
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