Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 8
________________ ॐ वीतराग सर्वज्ञ देव नमः श्रीआत्मशिक्षामावना। ॥दोहा॥ श्री जिनवर मुख वासिनी, जगमें ज्योति प्रकाश । पदमासन परमेश्वरी, पूरे वंछित आश ॥१॥ ब्रह्मसुता गुण आगली, कनक कमंडलु सार । वीणा पुस्तक धारिणी, तु त्रिभुवन जयकार ॥ २ ॥ श्री सरस्वती पाय नमि, मन धरि हर्ष अपार । आतम शिक्षा भावना, भणु सुणो नर नार ॥३॥ रे जीव सुण तुं बापड़ा, हिये विमासी जोय । आप स्वारथी सहु मल्यं, ताहरु नहीं जग कोय ॥४॥ धर्म विना सुण जीवड़ा, तु भम्यो भव अनन्त । मृढपणे भव तें किया, इम बोले भगवंत ॥ ५॥ लाख चोरासी योनि मां, फरी लियो अवतार। एकेकी योनी वली, अंनत अनंती वार ॥६॥ चउद राज परमाणुआ, सूई अग्रभाग ठाम । कर्मवशे जीव तु भम्यो, मूरख चेत न ताम ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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