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प्रार्यमतलीला ॥
गील के पार बजे उन की संतान में भी और दुए होते
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है ही नहीं कि जैना पिता हो उसकी संतान भी वैसी ही हो। यदि ऐसा होगा तोष्टिक आदि में एक जाति के मनुष्य उत्पन्न किये थे तो फिर उनकी संतान श्रेष्ठ और दुष्ट दो प्रकार की क्यों हो जाती और वर्षा प्राश्रम भी जन्म पर ही रहना अर्थात् प्रास्मता का पुत्र ब्राह्मण और ही रहता स्वामीनी के कथनानुसार शूद्र मनुष्य की उच्चता वा कर्म पर न रहती परन्तु खामी जी तो पुकार पुकार कहते हैं कि का पुत्र का पुत्र होना है। इसक विश्रेष्ठ सनुष्य तिमेदिन्दु में शुद
नाके
कीर कोणी और
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और दी इसमें दिवाना चाहिये कि की जीवन एकता जगत् मिथ्या आदिकवी और सादिक । उदयं का नित्र माया भर जाति भी हसत नहीं और श्री जैनियों के की के उस मत को स्वीकार ओ अर्थात् दृस्तु दुष्ट लोग दिल में | किया हो तो कुछ घच्छा है" रहने और हिन्दुसतान के निवार यांत सामीजी लिखते हैं कि यदि शंकराचार्य जी ने जय मतके खंडन करने के वाले झूठा मत स्थापन किया हो तो अच्छा किया अर्थात् दूसरे के मनको खंडन करने के वाहने स्वामी जी कूड़ा सत स्थापन कभी पसन्द करते हैं जिसमे स्पष्ट विदित होता है कि चाहे मूंठा
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रहेहोंगे अर्थात् उमविषयान और अन्य सर्व देव मी देशों में श्रेष्ठ और सर्वश्री दे दुष्ट मिट्ट हुबे | स्वामी जी के कथ नानुमार श्रेष्ठ लोग आते हैं और दुष्ट लोग दस्यु अर्थात् पृथ्वी को गर्व ही देशों में आये और दस्यु ब
में
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सते हैं और बसते रहे हैं देखिये स्वामी जी के मन घन्त कथन का क्या उलटासार निकल गया और कार्या भाइयोंका यह कहना ठीक न रहा कि हिन्दुस्तान के रहने वालों को चाहिये कि यह अपने आपको ना कहा करें क्योंकि उन्हों के रूपनांनुसार मय ही देश में सब ही देशाने दग्यु,
रेजीमें एक कहावत प्रसिद्ध है कि संग्राम में और इश्क में सब प्रकारके झूठ और धोके दवित होते हैं परंतु धर्मविषय में असत्य और मायाचार की कमी से उचित नहीं कहा है परन्तु हमको शक है कि स्वामीजी सत्यार्थ प्रकाश के ११ वे समुहास में गिरी है-
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