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श्रार्यमतलीला।
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मनुष्य मात्रको जो जान प्राप्त हुप्रा | विषयको बार २ पढ़ते पढ़ते तवियत्त है वह वेदोंसे ही हुआ है बिना बंदों तकना जाती है और नाक में दम प्रा के किसी भनष्यको कोई ज्ञान नहीं जाता है और पढ़ते २ वेद ममाप्त नहीं हो सकता है और वेदोंको मृष्टिके प्रा- দ্ধি । কানা ফন্ধি ফল সন্ধান दि ही में ईश्वरने मनुष्यों को दिये इस | को हजारों बार कैसे कोई पढ़े और कारण यदि वह यह मानते कि प्रा. इम एक ही बातको हजारों बार प. पोके हिन्दुस्तान में आने से पहिले ढने में किस प्रकार कोई अपना चित्त भीम प्रादिक वहशी लोग रहते थे लगावे ? जिससे स्पष्ट विदित होता तो मष्टि के प्रादिमें ईश्वर का वेदोंका है कि हजारों कधियों ने एक ही विदेना अमिद्ध हो जाता इम कागा भी षय पर कबिता की है और इन क. स्वामीजीको यह कहना पड़ा कि ति बितानों का संग्रह होकर घेद नाम हो ठयतसे प्रार्योके मानेसे पहिले हि- गया है-यह सब बात तो हम प्रा. न्दुस्तानमें कोई नहीं रहता था-यह | गामी लेखों में स्वामीजीके ही अर्थोंबात तो हम आगे दिखावेंगे कि वे | से स्पष्ट मिद्ध करेंगे परन्तु इम सदोंसे कदाचित् भी मनुष्य को ज्ञान मय तो हमको यह ही विचार करप्राप्त नहीं हुप्रा क्योंकि स्वामीजीके ना है कि क्या सष्टिकी आदिमें मअर्थों के अनमार वद कोई उपदेश | नुष्य तिटबतमें पैदा हुए और तिब्बत : या ज्ञान की पुस्तक नहीं है बरा वह | से आनेसे पहिले हिन्दुस्तान में कोई गीतोंका संग्रह है और गीत भी प्रायः मनुष्य नहीं रहता था? हमको शोक है राजाकी प्रशंगामें हैं कि हे शस्त्रधारी कि म्वामीजी ने यह न बताया कि
राजा तू हमारी रक्षा कर, हमारे श- यह बात उनको कहांसे मालम हुई : ओंको बिनाश कर, उनको जानमे | कि सष्टिकी आदिमें सब मनुष्य तिमारहाल, उनके नगर ग्राम विध्वंस | वतमें पैदा किये गये थे। करदे, हम भी तेरे साथ संग्राम में लहें स्वामी जीने अपने चेलोंको खश कऔर तू हमको धन दे अन्न दे,-और रनेके वास्ते ऐसा लिख तो दिया प. तमाशा यह कि प्रायः सत्र गीत इस रन्तु उनको यह विचार न हुआ कि एक ही विषयके हैं-जो गीत निका- | भील आदिक जङ्गली जाति जो इस लो जो पसा खोल कर देखो उम में
समग्र हिन्दुस्तान में रहती हैं उनकी प्रायः यही विषय और यही मज- बाबत यदि कोई पूरूँगा कि कहांसे मूम मिलेगा यहां तक कि एक ही । आई तो क्या जवाब दिया जावेगा?