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देखो और बदलो ३७
आत्मा अखंड नहीं
क्या हमारी आत्मा अखंड है? किसने कहा कि आत्मा अखंड है? हर मनुष्य की प्रकृति ने आत्मा को तोड़ रखा है। उसने अनेक दीवारें खींच ली हैं। उनसे आत्मा अनेक खंडों में विभाजित हो गई है। एक अखंड चेतना टुकड़ों में बंट गई। हजारों टुकड़े हो गए। अखंडता गायब हो गई। जिन लोगों ने गहराई में जाने का प्रयत्न किया है, उन्होंने टूटे हुए चेतना के खंडों को देखा है, जाना है। मनोविज्ञान का विद्यार्थी जानता है कि मनःचेतना के मुख्यतः तीन स्तर हैं-चेतन मन, अर्द्धचेतन मन, अवचेतन मन । भगवान् महावीर ने आठ आत्माएं स्वीकार की-द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चरित्र आत्मा और वीर्य आत्मा। ये तो संकेत मात्र हैं। आत्माएं असंख्य हो सकती हैं। एक ही अखंड आत्मा के असंख्य टुकड़े। इस असंख्य के अवबोध को जैन थोकड़ों की भाषा में 'अनेरी आत्मा' शब्द से संगृहीत किया है। 'अनेरी' का अर्थ है-दूसरी । जिस आत्मा का नामकरण हो सके वह उस नाम से अभिहित हो और जिसका नामकरण न हो सके वह 'अनेरी' शब्द से अभिव्यक्त हो। आत्मा : साधन भी, साध्य भी
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने की प्रक्रिया को हम समझें। हम बाहर से चलें। पहले हम चेतन मन का प्रयोग करें। सबसे पहले बाहर की चेतना को देखें। प्रवेश-द्वार से गुजरे बिना भीतरी मकान तक नहीं पहुंचा जा सकता। भीतर तक पहुंचने के लिए सारा रास्ता तय करना होता है। प्रश्न होता है कि जिसने द्वार को देखा, क्या उसने मकान को देख डाला? क्या दरवाजा मकान है? नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता और है, यह भी नहीं कहा जा सकता। यदि दरवाजा मकान है तो भीतर का मकान भी मकान नहीं है। यदि दरवाजा मकान नहीं है तो भीतर क्या है? केवल दरवाजे को भी मकान नहीं कह सकते
और केवल कमरे को भी मकान नहीं कह सकते। दरवाजा, कमरे, खिड़कियां, मैदान-इन सब का समवाय है मकान। मकान के जितने अवयव हैं वे सब मकान हैं।
हमारा बाहरी चित्त है वह भी आत्मा है और सबसे भीतर जो स्वस्थ चेतना का अधिष्ठान है वह भी आत्मा है। हमारा प्रवेशद्वार है बाहरी चित्त और हमें पहुंचना है शुद्ध चैतन्य तक। एक है साध्य और एक है साधन । साधन है वह भी आत्मा है और साध्य है वह भी आत्मा है। साधन आत्मा के द्वारा साध्य आत्मा तक पहुंचना है। शरीर है आत्मा
'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें' का तात्पर्य है कि चित्त के द्वारा आत्मा
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