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चित्त-समाधि के सूत्र (१) १४७
तो गहराई की बात समझ में नहीं आयेगी। किन्तु जब हम चेतना की पों को देखते हैं, सूक्ष्म जगत् में प्रवेश करते हैं तो हमें पता चलता है कि इस शरीर के भीतर इतनी गहराइयां हैं, उन्हें मापने के लिए, इन गहराइयों को पार करने के लिए और उन्हें कुरेदने के लिए, कभी-कभी सैकड़ों-सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं और उनसे भी काम न बने तो कभी-कभी हजारों जन्म लग जाते हैं। साधना की यात्रा, समाधि की यात्रा बहुत लम्बी है। वह कोई छोटी यात्रा नहीं है। इतनी गहराई, अनन्त परमाणु भरे पड़े हैं। एक को पार करें तो भी शेष अनन्त रहते हैं, फिर पार करें तो भी अनन्त रहते हैं। अनन्त का कभी अन्त आता नहीं। बड़ी कठिन पहेली बनती है। इतनी गहराई दुनिया में किसी वस्तु की नहीं है, जितनी हमारे इस शरीर के भीतर गहराई विद्यमान है। इन सारी गहराइयों को पार करने के लिए काफी खोदना पड़ेगा, पूरा प्रयत्न करना पड़ेगा। अनायास कुछ भी उपलब्ध नहीं होगा। आयास : अनायास
दुनिया में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो लगता है कि अनायास घटित हो गईं, किन्तु जो अनायास लगती हैं उनके पीछे भी न जाने कितना आयास हुआ होगा। पहले बहुत आयास हो चुका, बहुत श्रम हो चुका और आज वह घटना घटती है तो लगता है कि अनायास घट गई। क्योंकि जो पीछे आयास हो चुका, उसका हमें पता नहीं चलता। जब हम आयास करते हैं तो हमें पता चलता है कि हम आयास कर रहे हैं। अनायास घटना और आयास घटना, दो प्रकार की घटना होती है। एक घटना के पीछे हमारा बहुत श्रम होता है और एक घटना के पीछे हमारा बहुत श्रम नहीं होता। समाधि के दो प्रकार
समाधि भी दो प्रकार की होती है। एक प्रयत्न के द्वारा लब्ध होने वाली समाधि और दूसरी बिना प्रयत्न के एक छलांग होती है और समाधि उपलब्ध हो जाती है। कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। एक कोई ऐसा हेतु मिला, निमित्त मिला और समाधि घटित हो गई। दोनों प्रकार हैं समाधि के। एक है-सायास समाधि और दूसरी है-अनायास समाधि। एक साधना-लब्ध समाधि, दूसरी आकस्मिक समाधि । सायास समाधि का एक क्रम होता है। जो छलांग है उसमें कोई क्रम नहीं होता। यह तो आकस्मिक घटना है। तत्काल घट गई। इसके लिए किसी प्रयत्न की जरूरत नहीं। इसके लिए साधना की पद्धति की जरूरत नहीं। आंख खुली और सब कुछ उपलब्ध । एक सपना जैसा होता है। एक दिव्य ज्योति उपलब्ध होती है और घटना घट जाती है। किन्तु सायास समाधि का एक क्रम होता है। और उसी क्रम की साधना अध्यात्म में रस लेने वाले, प्रेक्षा-शिविर में आने वाले लोग करते हैं।
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