Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 313
________________ ३०२ अप्पाणं सरणं गच्छामि पदार्थ में सुख-दुःख देने की क्षमता नहीं होती । अचेतन में यह क्षमता नहीं होती । पदार्थ के साथ हमारा सम्बन्ध होता है, संयोग होता है, और फिर वियोग हो जाता है। आदमी प्रातःकाल उठता है और उठते ही पदार्थ के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। कुछ लोग उठते ही अपनी हथेलियां देखते हैं, उनसे सम्बन्ध स्थापित करते हैं । वे मानते हैं कि ऐसा करना शुभ है, मंगलकारी है। कुछ व्यक्ति उठते ही अपने आस-पास के व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करते हैं, कमरे में पड़ी हुई वस्तुओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं। जब वे बाहर जाते हैं तब अन्यान्य वस्तुओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं । उठते ही आदत के कारण भी सम्पर्क स्थापित होता है। चाय की आदत या खाने की आदत हो तो चाय और खाने के पदार्थों के साथ सम्पर्क होता है। इस प्रकार उठते ही बाह्य जगत् के साथ हमारा संपर्क स्थापित होना शुरू हो जाता है और वह सिलसिला दिन भर और रात भर (जब तक नहीं सोते तब तक) चलता रहता है। न जाने कितनी वस्तुओं के साथ हमारा संपर्क होता है और हम उनसे सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं । बाह्य पदार्थ के साथ सम्बन्ध स्थापित होते ही एक झटका लगता है । दूसरे पदार्थ से संपर्क होते ही दूसरा झटका लगता है और ये सारे झटके स्मृति-कोष्ठ में जाकर संचित हो जाते हैं। पदार्थ यदि कमजोर होता है तो झटका मन्द होता है । पदार्थ यदि शक्तिशाली होता है तो झटका तीव्र होता है । झटका लगता अवश्य है । एक बच्ची पड़ोसी के घर गई । घर का मालिक खड़ा था। बच्ची ने कहा - स्त्री चाहिए। घर के स्वामी ने अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए कहा- वह खड़ी है सामने, ले जाओ। बच्ची ने कहा- 'वह नहीं, कपड़ों वाली चाहिए ।' मालिक बोला- कपड़ों वाली ही तो है, नंगी कहां है ? बच्ची बोली - 'यह नहीं, करंट वाली चाहिए, जिसके हाथ लगते ही झटका लगे ।' मालिक ने हंसते हुए कहा - 'इसके हाथ लगाकर तो देखो, यह भी तेज झटका देती है । ' पदार्थ का झटका लगता है और सारे झटके स्मृति-कोष्ठ में जाकर जमा हो जाते हैं । यदि झटका तेज होता है तो वह मज्जा तक चला जाता है और स्थायी बन जाता है । आदमी उसमें उलझ जाता है, रास्ता बन्द हो जाता है । ये झटके अवरोध पैदा करते हैं। यह है आसक्ति, मूर्च्छा, मोह। हमने न जाने कितने संबंध स्थापित कर रखे हैं । हमारा संबंध चेतन से भी है और अचेतन से भी है। हजारों-हजारों लोगों से हमारा सम्बन्ध है और हजारों-हजारों पदार्थों से भी हमारा संबंध है। सारे के सारे संबंध हमारी चेतना की प्रणाली में अवरोध पैदा किये हुए हैं। चेतना जो केवल चेतना थी, शुद्ध चेतना थी, चेतना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था, वहां इन सारे सम्पर्कों और सम्बन्धों ने अवरोध पैदा कर दिए। चेतना का मार्ग जो राजपथ था, साफ था, विस्तीर्ण था, उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354