Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 311
________________ ३०० अप्पाणं सरणं गच्छामि कम करने लग जाते हैं। शरीर में अधिक विष जमा हो जाने के कारण नाड़ी-संस्थान दुर्बल हो जाता है, मल फेंकने वाले अवयव कमजोर हो जाते हैं, और धीरे-धीरे धमनियां विष से भर जाती हैं। मल आंतों से चिपट जाता है, रास्ते संकरे हो जाते हैं, आंतें कठोर हो जाती हैं। जब तक मल निकलने के द्वार ठीक काम करते हैं, तब तक विष जमा होते हैं और बाहर निकल जाते हैं। विष का जमा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। ऐसा कभी संभव नहीं है कि शरीर में मल जमा न हो, विष का संचय न हो। हम जो कुछ खाते हैं, सब के साथ विष जाता है। जो अमृत माना जाता है, उसके साथ भी विष जुड़ा रहता है। यह माना जाता है-फल बहुत लाभप्रद हैं। पत्ती का शाक बहुत अच्छा है। दूध, घी और फलों के रस अमृत-तुल्य हैं, स्वास्थ्यकारक हैं। किन्तु इन सबके साथ विष है। एक भी खाद्य पदार्थ ऐसा नहीं है जिसे केवल अमृत कहा जाए, जिसके साथ विष की मात्रा न हो। हम अमृत भी खाते हैं और साथ-साथ जहर भी खाते हैं। जब वह उचित मात्रा में बाहर नहीं निकलता तब अनेक रोग आक्रमण करते हैं। जब तक मल-निष्कासन का मार्ग साफ रहता है, खुला रहता है, तब तक जीवन की यात्रा निर्बाधरूप से चलती रहती है। आवश्यक यह है कि मार्ग साफ रहना चाहिए। ये नाले गंदे न हों, सदा साफ रहें। इनमें कोई अवरोध नहीं होना चाहिए, जिससे कि जो जहर जमा हो वह सहजतया विसर्जित हो जाए। यदि अवरोध नहीं होगा तो बुढ़ापा नहीं आएगा। जवान सुखी, बूढ़ा दुःखी इस शरीर की प्रक्रिया के साथ जब मैं चित्त की और चेतना की प्रक्रिया को देखता हूं तो मुझे लगता है कि दोनों की प्रक्रिया समान है। बाह्य जगत् में यह प्रश्न है कि बूढ़ा कौन? जवान कौन? मानसिक जगत् में यह प्रश्न है कि सुखी कौन? दुःखी कौन? इसका उत्तर है-जवान अर्थात् सुखी, बूढ़ा अर्थात् दुःखी। बुढ़ापा अपने आप में दुःख है। महावीर ने दुःखों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य। अहो दुक्खो हु संसारो, जस्स कीसति जन्तवो।। -जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दुःख है और मरण दुःख है। बुढ़ापा अपने आप में बीमारी है, दुःख है। मानसिक जगत् में जवान वह है जिसके मन में कोई संताप आता है और निकल जाता है। जिसमें कोई अवरोध नहीं आता, वह सुखी और जवान है। दुःखी वह है जिसके मन में संताप आता है और वह जमा हो जाता है, निकलने का रास्ता नहीं मिलता। वह बूढ़ा होता है। दुःखी और बूढ़ा-कोई अन्तर नहीं है। हम यह न मानें कि इस दुनिया में कोई जन्म ले और संताप न आए। जैसे अमृत आए और साथ में जहर न आए, ऐसा नहीं हो सकता तो मानसिक जगत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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