Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 330
________________ अप्पाणं सरणं गच्छामि ३१६ है-विपरीत पोषण। आयुर्वेद में इस विषय की विशद चर्चा प्राप्त है। आज के डॉक्टर भी इस ओर आकृष्ट हुए हैं। विपरीत भोज्य पदार्थों से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। खरबूजे के साथ शहद लेना या दूध लेना विरुद्ध भोजन है। माना जाता है कि आम के साथ चीनी नहीं खानी चाहिए। यह नुकसानकारक होती हैं। इस प्रकार आज का आदमी स्वाद के कारण अनेक प्रकार के विरुद्ध भोजन किए जा रहा है। रोग की उत्पत्ति में यह भी एक प्रमुख कारण है। इससे आयुष्य भी कम होता है क्योंकि शरीर-तंत्र असमय में ही क्षीण हो जाता है। इससे अनेक विष जमा होते हैं। __ इस प्रकार अनेक व्यक्ति भोजन संबंधी अपने अज्ञान और भ्रान्त धारणाओं के कारण तथा जीवन-चर्या के नियमों की अनभिज्ञता के कारण अकाल-मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। यह सारी चर्चा इस सन्दर्भ में की गई है कि अकाल-मृत्यु क्यों होती है? बीमारियां क्यों होती हैं ? आदमी पागल और दुःखी क्यों होता है ? ये सब इसीलिए घटित होते हैं कि आदमी सत्य की शरण में नहीं जाता, अपने आप की शरण में नहीं जाता। वह दूसरों की शरण खोजता है, पर अपनी शरण नहीं खोजता, अपनी शक्तियों की शरण नहीं खोजता। यह सबसे बड़ा खतरा है। मां की शरण मृत्यु बन गई ___ एक भाई ने बताया कि एक बड़े डॉक्टर ने उसके बच्चे का ऑपरेशन किया और नयी समस्या पैदा हो गई। बीमारी थी पेट की और ऑपरेशन किया अपेन्डिसाइड का। ऑपरेशन से ठीक नहीं हुआ। बड़े से बड़ा डॉक्टर कहता कि दो लाख रुपये खर्च होंगे तब कहीं यह बच्चा ठीक हो सकता है, अन्यथा नहीं। बड़े डॉक्टरों की शरण में जाना भी खतरे से खाली नहीं होता। जहां शरण दूसरे की है, वहां खतरा निश्चित है। बच्चे को ज्वर आ गया। कई दिन बीत गये। वैद्य ने खाने पर नियंत्रण कर दिया। दूध और रूखी रोटी दी जाने लगी। बच्चा छोटा था। एक दिन उसने दूसरे बच्चों को मिठाई खाते देख लिया। उसका मन मिठाई खाने के लिए ललचा उठा। पिताजी से कहा, भाई और बहन से मिठाई मांगी। किसी ने नहीं दी, तब वह मां के पास पहुंचा। मां का मन पिघल गया। सोचा, बहुत दिनों से बच्चे ने कुछ नहीं खाया। इसका मन मिठाई खाने के लिए ललचा रहा है। एक लड्डू दे दूं तो क्या फर्क पड़ेगा। बच्चे को लड्डू मिल गया। उसने बड़े स्वाद से उसे खाया। ज्वर का प्रकोप बढ़ा और तीन ही दिनों में बच्चा मर गया। मां की शरण भी बच्चे के लिए खतरा बन गई। शरण-अशरण की सीमारेखा जहां भी दूसरे की शरण है वहां स्व से व्यवधान पैदा हो जाता है। जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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