Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 340
________________ अप्पाणं सरणं गच्छामि ३२६ गई। उसने सोचा-काम से निवृत्त होकर भोजन कर लेंगे। आइंस्टीन काम में लगे रहे। इतने में ही उनसे मिलने एक मित्र आया। आइंस्टीन ने आंख उठाकर भी उसकी ओर नहीं देखा। वह कुछ देर वहां बैठा। उसने प्रतीक्षा की पर आइंस्टीन ने ध्यान नहीं दिया। वह भूखा था। उसने देखा-एक मेज पर भोजन पड़ा है। वह गया और भरपेट भोजन कर, हाथ धोकर चला गया। कुछ समय पश्चात आइंस्टीन की गुत्थी सुलझी। वे भोजन के लिए मेज पर आए। देखा, बर्तन में कुछ भी नहीं है। थोड़ा पानी पड़ा है। सोचा-सम्भव है मैंने भोजन कर लिया, अन्यथा ये बर्तन खाली नहीं रहते। वे पुनः अपने काम में लग गए। भूख का भान ही नहीं रहा। ___ हम उन्हें भोजन के प्रति लापरवाह, असावधान या अनासक्त कुछ भी कहें। वे थे इस शताब्दी के महान् बौद्धिक व्यक्ति। उनकी सारी ऊर्जा ज्ञान केन्द्र की ओर प्रवाहित रहती थी। उसे काम केन्द्र की ओर प्रवाहित होने का कम अवसर मिलता था। यही कारण है कि उनका ज्ञान-केन्द्र जागृत हो सका और वे विश्व को अनुपम देन दे सके। प्राण-ऊर्जा का ऊर्ध्व-अधोगमन जिस व्यक्ति की प्राण-ऊर्जा नीचे की ओर, काम-केन्द्र की ओर प्रवाहित होती है उसमें निम्नतम वृत्तियां जागती हैं और जिसकी प्राण-ऊर्जा ऊपर की ओर, ज्ञान केन्द्र की ओर प्रवाहित होती है उसमें श्रेष्ठं वृत्तियां जागती हैं। वह बहुत नये काम कर सकता है। प्राण-ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन का पथ है-सुषुम्णा का मार्ग। प्राण-ऊर्जा जब ऊर्ध्वयात्रा करती है तब उदात्त-वृत्तियां जागृत होती हैं। वह व्यक्ति ज्ञान, व्यवहार और आचार के क्षेत्र में बहुत आश्चर्यकारी विकास कर लेता है। ब्रह्मचर्य : प्राण-ऊर्जा का प्रज्वलन आज एक बड़ा संकट उपस्थित हुआ है। बहुत सारे लोग मनोविज्ञान की ओट लेकर अब्रह्मचर्यको उपादेय बतलाते हैं। उनका कहना है कि काम स्वाभाविक वृत्ति है। उसके सेवन में कोई दोष नहीं है। बाहरी दृष्टि से कोई दोष नहीं है-यह मान भी लें क्योंकि एक अब्रह्मचारी आदमी शरीर से स्वस्थ हो सकता है, वह मांसल और सुन्दर लग सकता है। उसका चेहरा तेजस्वी और दीप्तिमान् हो सकता है; किन्तु आन्तरिक दृष्टि से वह खोखला ही होता है। ___आचार्यश्री दिल्ली में थे। पत्रकार गोष्ठी थी। एक पत्रकार ने पूछा-साधु ब्रह्मचारी होते हैं। उन्हें बहुत तेजस्वी होना चाहिए। उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट होना चाहिए। चेहरे पर चमक होनी चाहिए। पर आपके साधुओं में यह सब दिखाई नहीं देता। मैंने उस समय कुछ समाधान भी दिया। पर मेरे मन में एक प्रश्न पैदा हो गया कि क्या पत्रकारों का प्रश्न समुचित है? मैंने उसी दिन से खोज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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