Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 349
________________ ३३८ अप्पाणं सरणं गच्छामि आभामंडल का प्रभाव प्राचीन साहित्य में चर्चा आती है कि वीतराग या तीर्थंकर के समक्ष नित्य-वैरी भी मित्र बन जाते हैं। उनके आभामंडल से विकीर्ण होने वाली रश्मियां सारे वातावरण को प्रभावित कर देती हैं। प्राणी वैर को भूल जाते हैं। इसका कारण है कि उन विशिष्ट साधकों की प्राण-ऊर्जा, प्राण-विद्युत् इतनी शक्तिशाली होती है कि उसकी परिधि में आने वाला प्रत्येक प्राणी शान्त और सहज हो जाता है। जो मारने या लड़ने की भावना से आता है वह भी शान्त हो जाता है। यह इसलिए कि उस प्राणी का ग्रन्थि-स्राव बदल जाता है। जिस स्राव के कारण उत्तेजना या बुरी वृत्ति पनपती थी, वह स्राव रुक जाता है और शान्त वृत्ति को पनपाने वाला स्राव उदित हो जाता है। अध्यात्म : प्रतिरोधात्मक शक्ति 'परिस्थिति ही सब कुछ है'-यह तब तक सत्य है, जब तक व्यक्ति आन्तरिक स्रावों को बदलना नहीं जानता। जब वह आन्तरिक स्रावों को बदलना जान जाता है तब वह परिस्थिति को सार्वभौम सत्ता नहीं सौंपता। उसे सचाई का पता लग जाता है। जो आन्तरिक स्रावों को बदलना नहीं जानता वह परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। जिस व्यक्ति को यह सूत्र मिल गया कि ध्यान-साधना द्वारा स्रावों को बदला जा सकता है, फिर परिस्थितियां उसके लिए व्यर्थ हो जाती हैं। परिस्थितियां तभी प्रभावकारी बनी रहती हैं जब उन्हें भीतर में पुष्ट होने का अवसर मिलता है। रोग उसी शरीर में वृद्धिंगत होता है जिसकी प्रतिरोधात्मक शक्ति दुर्बल हो जाती है, रोग-निरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। शरीर में रोग के असंख्य कीटाणु हैं। किन्तु वे सक्रिय तभी बनते हैं जब रोग-निरोधक शक्ति दुर्बल हो जाती है। वे कीटाणु पनपते हैं और तब शरीर रोग-ग्रस्त हो जाता है। आप यह न मानें कि इस शरीर में एक ही जीव जी रहा है। असंख्य प्राणी इसके साथ पल रहे हैं, जी रहे हैं। सारा शरीर कीटाणुओं से भरा पड़ा है। एक आदमी बीमार होता है, दूसरा नहीं । यदि कीटाणु ही बीमारी पैदा करते हों तो संसार में कोई भी आदमी स्वस्थ नहीं रह सकता। सब आदमी बीमार हो जाएंगे। वे ही आदमी बीमार पड़ते हैं, जो रोग-निरोधक शक्ति खो बैठे हैं या जिनकी यह शक्ति दुर्बल हो गई है। जिजीविषा जीने का सबसे बड़ा आधार है जिजीविषा-जीवित रहने की इच्छा और प्राणशक्ति। जो व्यक्ति यह मान लेता है कि मुझे मर जाना चाहिए, वह मरने की स्थिति में चलने लगता है। स्वस्थ रहने का पहला सूत्र है-मैं स्वस्थ हूं, इस भावना का विकास। जिस व्यक्ति में 'मैं बीमार हूं, मैं बीमार हूं'-यह भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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