Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 338
________________ अप्पाणं सरणं गच्छामि ३२७ समाधान खोजने का अवसर मिलता है और यदि अर्धसत्य को पूर्णसत्य मान लिया जाता है तो अनेक नयी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। काम जीवन का एक भाग है। इस सचाई को स्वीकार करते हुए भी हम इस बात को न भूलें कि जिस व्यक्ति ने काम के आनन्द से भी बड़े आनन्द की ऊर्जा को उत्पन्न कर लिया, उसके लिए काम निकम्मा बन गया। जो व्यक्ति काम के आनन्द के स्रोत को बंद कर देता है किन्तु आनन्द के महास्रोत का द्वार उद्घाटित करना नहीं जानता, वह ब्रह्मचारी नहीं बन सकता, पागल बन सकता है। ब्रह्मचारी वही होता है जो काम-जनित सुख के द्वार को रोकने के साथ-साथ सुख के एक महाद्वार को उद्घाटित कर देता है, जिससे आनन्द का सतत प्रवाह प्रवहमान रहता है। तब काम-सुख व्यर्थ बन जाता है,उसकी सार्थकता समाप्त हो जाती है। शरीर में एक ग्रन्थि है-एड्रीनल और दूसरी है-पिच्यूटरी। ये दोनों ग्रन्थियां बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये हमारे व्यवहार और आचरण को प्रभावित करती हैं। एड्रीनल ग्रन्थि के कारण ही कामवासना, उत्तेजना, आवेग आदि-आदि जागृत होते हैं। पिच्युटरी ग्रन्थि के द्वारा यदि उस एड्रीनल ग्रन्थि को नियंत्रित या प्रभावित कर दिया जाता है, निष्क्रिय बना दिया जाता है तो सारी काम-वृत्तियां समाप्त हो जाती हैं, आवेग कम हो जाते हैं और अपूर्व आनन्द की वृत्ति जागृत हो जाती है। तब काम अकाम बन जाता है। किन्तु जो व्यक्ति पिच्यूटरी या दर्शन-केन्द्र को जागृत करना नहीं जानता और ब्रह्मचारी बनने की बात करता है या प्रयत्न करता है तो वह सचमुच पागलपन की अवस्था तक पहुंच जाता है। मनोविज्ञान का भी यही सिद्धान्त है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य भी एककोणीय है। यह इस अर्थ में सत्य है कि पिच्यूटरी ग्रन्थि को जागृत किए बिना कोई ब्रह्मचारी होने का प्रयत्न करता है तो वह निश्चित ही विषाद से भर जाता है, अर्ध-उन्माद की स्थिति में चला जाता है। कामदेव की पत्नी रती विलाप करते हुए कहती है-शिव ने अपने तीसरे नेत्र के द्वारा, प्रलयंकारी नेत्र के द्वारा काम को भस्म कर डाला, राख का ढेर बना डाला। शिव कौन नहीं? प्रत्येक आदमी शिव है। कोई भी अशिव नहीं है। जिसने अपने शिवत्व को प्रकट कर डाला, जिसने अपने महादेव को जगा दिया, जिसकी आत्मा में सुषुप्त शिव जाग गया, वह आदमी स्वयं शिव बन गया। साधना और ध्यान करने वाला, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने वाला हर व्यक्ति शिव होता है। जिसने प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा अपनी चित्तवृत्तियों को संयत कर अपने भीतर समाये हुए चैतन्य के स्पन्दनों का थोड़ा-सा साक्षात्कार किया है, उस व्यक्ति ने अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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