Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 343
________________ ३३२ अप्पाणं सरणं गच्छामि यथार्थ का धरातल संयम की साधना का सूत्र यथार्थ के जगत् में जीने का सूत्र है। यह सूत्र व्यक्ति को कामना और कल्पना से ऊपर उठाकर यथार्थ के धरातल पर ला खड़ा करता है। जिस व्यक्ति में प्राण-ऊर्जा प्रबल होती है, जिसका मनोबल बहुत दृढ़ होता है, वह व्यक्ति काल्पनिक समस्याओं में नहीं उलझता। काल्पनिक समस्याएं उसी व्यक्ति को सताती हैं जिसका मनोबल दुर्बल होता है और मनोबल उसी व्यक्ति का दुर्बल होता है जिसकी प्राण-ऊर्जा न्यून होती है, संयम कम होता है। आशंका : आशंका ____ आज का पढ़ा-लिखा आदमी संयम और त्याग को मखौल मानता है। जिसने जीवन की गहराइयों में उतरकर जीवन को पढ़ने का प्रयत्न नहीं किया, वह संयम का मूल्य नहीं समझ सकता। आप स्वयं अनुभव करें कि व्यक्ति कितनी काल्पनिक समस्याएं खड़ी कर लेता है और उसमें उलझ जाता है। व्यक्ति संदेहों का पुतला है। वह अनेक प्रकार के काल्पनिक संदेहों को पालता है और उनका शिकार होता है। बेटा बाप को और पति पत्नी को संदेह की दृष्टि से देखता है। भाई भाई को संदेह की दृष्टि से देखता है। इस संदेह से अनेक कल्पनाएं उभरती हैं। बुढ़ापे में क्या होगा? बीमार हो जाऊंगा तो क्या होगा? बेटा मर जाएगा तो क्या होगा? पत्नी मर जाएगी तो क्या होगा? इतनी कल्पना! इतनी आशंका! इतना भय! ऐसा लगता है कि जीवन में आश्वासन जैसा कुछ भी नहीं है। यह क्यों है? यह दुर्बल मनोभावना का प्रतीक है। जो व्यक्ति प्राणवान् होता है, वह कभी नहीं सोचता-'अब क्या होगा?' वह सोचता है-मैं हूं तो सब कुछ हो जाएगा और यदि मैं नहीं हूं तो कुछ नहीं होगा। एक आदमी रिक्शा में बैठकर जा रह था। वह अत्यंत उदासीन और चिंतातुर था। रिक्शाचालक ने पूछा- 'बाबूजी! चेहरा इतना कुम्हलाया-सा कैसे है? इतने चिन्तातुर क्यों? छोटी उम्र में बूढ़े लग रहे हो।' उसने कहा-'दो लड़कियां हैं। शादी करनी है। पास में पैसा नहीं है। क्या करूं? बस, यही चिंता खा रही है।' रिक्शाचालक बोला- 'मैं सत्तर वर्ष का हूं। चार लड़कियों की शादी कर चुका हूं। दो लड़कियों की शादी करनी है। कोई चिन्ता नहीं है। मस्ती में जीता हूं।' समस्या क्या बड़ी : क्या छोटी __ समस्या हर व्यक्ति के सामने आती है किन्तु जो व्यक्ति कल्पना के लोक में जीता है वह राई-भर समस्या को पर्वत जैसी बड़ी समस्या बना देता है। जो व्यक्ति प्राणवान होता है वह पर्वत जैसी बड़ी समस्या को भी कंकर जैसी तुच्छ मानकर उसका पार पा जाता है और वह मस्ती में जीता चला जाता है। मरना ही है तो समस्या से दबकर क्यों मरा जाए? कठिनाई है तो उसे हंसकर झेला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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