Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ ३१८ अप्पाणं सरणं गच्छामि एक दिन में इतनी केलौरी अवश्य लेनी चाहिए। चीनी में अधिक केलौरी होती है-यह जानकर लोग चीनी अधिक खाने लगे। परिणामस्वरूप अनेक बीमारियां होने लगीं। उस पर नियंत्रण किया गया। फिर प्रोटीन का युग आया। मान्यता बन गई कि प्रोटीन अधिक खानी चाहिए। मैंने पहले जो कहा कि पचास वर्ष पूर्व लोग अल्पायु में मर जाते थे, उसका एक कारण यह था कि वे प्रोटीन अधिक मात्रा में खाते थे। घी, दूध, मक्खन और दाल-इनमें प्रोटीन अधिक होता है। लोग इन्हें ज्यादा खाते। इनको पचा पाना सरल नहीं था, अतः अनेक बीमारियां पनपीं। लोग अकाल में ही मृत्यु-कवलित हो जाते। यह आयुष्य की कमी का भी कारण बना। तीसरा युग आया विटामिन का। लोग विटामिन की गोलियों का अंधाधुन्ध प्रयोग करने लगे। इस अति-प्रयोग से लाभ के बदले हानि अधिक हुई। इस मात्रा की अति के कारण अकाल-मृत्यु होने लगी। अ-भोजन जिस प्रकार अति-भोजन अकाल मृत्यु या अल्प-आयुष्य का कारण बनता है वैसे ही अ-भोजन भी अकाल-मृत्यु या अल्प-आयुष्य का कारण बनता है। अ-भोजन का अर्थ भोजन का न मिलना ही नहीं है किन्तु अपोषक भोजन भी है। जैसे भोजन नहीं करने वाला कुछ दिन जीवित रहता है, वैसे ही अपोषक भोजन करने वाला कुछ ही दिन जीवित रहता है। शरीर-निर्वाह के लिए पर्याप्त पोषण आवश्यक होता है। तीन शब्द हैं-पोषण, अपोषण और कुपोषण। ये भोजन की तीन अवस्थाएं बन जाती हैं। एक है अपोषण की अवस्था। जब शरीर-तंत्र को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिलता तब वह रोग-ग्रस्त हो जाता है, क्षीण होने लग जाता है। इससे मन भी प्रभावित होता है। उसमें भी विकृति उत्पन्न हो जाती है। पहले यह माना जाता था कि मस्तिष्क की बीमारी, स्नायविक दुर्बलता, चित्त की विकृति और मानसिक पागलपन-ये सब मन की अवस्था से, मन की विकृति से होते हैं। किन्तु नयी खोजों ने यह सिद्ध कर दिया कि अपोषण से भी मानसिक पागलपन पनपता है। जब स्नायुओं को पूरा पोषण नहीं मिलता, तब धीरे-धीरे आदमी पागलपन की ओर बढ़ता जाता है। ऐसे प्रयोग किये गए कि जो पागल थे उन्हें पर्याप्त पोषण दिया गया। वे स्वस्थ हो गए। उनका पागलपन मिट गया। आज किसी भी बीमारी की चिकित्सा केवल मन के आधार पर या केवल शरीर के आधार पर ही नहीं की जाती, किन्तु संयुक्त चिकित्सा की जाती है। उसे मनोकाय-चिकित्सा कहा जाता है। बीमारियां भी मनोकायिक और चिकित्सा भी मनोकायिक। विपरीत भोजन जैसे अपोषण के कारण अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं, वैसे ही कुपोषण के द्वारा भी अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। कुपोषण का अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354