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अप्पाणं सरणं गच्छामि ३१७
है। किसी व्यक्ति का पैर कमजोर हो जाता है तो दूसरा पैर अधिक काम करने लग जाता है। एक हाथ कमजोर हो जाता है तो दूसरा हाथ अधिक काम करने लग जाता है। एक आंख कमजोर होती है तो दूसरी आंख अधिक सक्रिय हो जाती है। एक कान कम सुनने लगता है तो दूसरा कान अधिक संवेदनशील हो जाता है। शरीर में शक्ति संचित रहती है और शरीर की यह व्यवस्था है कि जब कोई एक अवयव कमजोर होता है तो शरीर उसका भार दूसरे अवयव पर डाल देता है और दूसरा अवयव उस दायित्व को सम्भाल लेता है और भली-भांति उस दायित्व का निर्वाह भी करता है। शरीर, नाड़ी-संस्थान और मस्तिष्क में शक्ति संचित रहती है। हम इसे नहीं जानते, इसीलिए सुप्त या संचित शक्तियों को जागृत करने का प्रयत्न नहीं करते। आदमी यदि अपनी शक्तियों से परिचित हो और शक्ति-जागरण की प्रक्रिया को जानता हो तो वह बहुत कुछ कर सकता है। वैज्ञानिक तथ्य _ वैज्ञानिकों ने यह खोज की कि आदमी की औसत आयु डेढ़ सौ वर्ष की होती है। इस अवधि तक हर आदमी को जीना चाहिए, पर जीता नहीं। इस खोज का आधार है-मेच्यूरिटी, सवयस्कता। जिस अवस्था में सवयस्कता प्राप्त होती है उससे छह गुनी उम्र होती है। कुत्ते की सवयस्कता ढाई वर्ष की होती है तो उसकी औसत आयु पन्द्रह वर्ष की मानी गई है। आदमी की सवयस्कता पचीस वर्ष में होती है तो उसकी उम्र डेढ़ सौ वर्ष की होनी चाहिए। यह विज्ञान के द्वारा गणित की भाषा में खोजा गया सत्य है। यह सही भी लगता है। पर आदमी इतना लम्बा नहीं जी पाता। उसमें जीने की शक्ति है, क्षमता है, पर वह जी नहीं पाता। इसके दो कारण हैं-शक्तियों का अपरिचय और खानपान की अवधि। कुछ वर्ष पूर्व तक आदमी यदि पचास वर्ष का होकर मरता तो लोग मानते बूढ़ा होकर मरा है, कोई बात नहीं है। आज यदि आदमी सत्तर-अस्सी वर्ष का होता है, फिर भी उसे बूढ़ा नहीं माना जाता। यह सोचने का अन्तर आ गया। एक बात और है। उस समय ४०-४५ वर्ष का आदमी बूढ़ा जैसा लगने लग जाता था। आज वैसी स्थिति नहीं है। __ आयु कम होने के दो कारण हैं-भोजन और तनाव। स्थानांग सूत्र में अकाल मृत्यु के सात करण बतलाए हैं उसमें एक है अतिभोजन और दूसरा है-अ-भोजन। अतिभोजन से भी अकाल-मृत्यु होती है और अ-भोजन से भी अकाल मृत्यु होती है। अति-भोजन
भोजन के सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक मान्यताएं प्रचलित होती रहती हैं। एक युग आया केलौरी का। यह माना जाने लगा कि प्रत्येक व्यक्ति को
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